Monday, December 2, 2013

अधूरा- इक कहानी

आज पड़ोस के बूढ़े दादा जी एक कहानी सुना रहे थे! सभी बच्चे झुण्ड बना के दादा जी के इर्द-गिर्द बैठे हुए थे, तो कुछ उनकी गोदी में लेटे हुए थे! जाने क्यूँ किन्तु मुझे ये कहानी उनकी व्यथा मालूम पड़ती थी! हम लोग सुन रहे थे दादा जी श्लोक सुना-सुना कर औऱ गीत गा कर कहानी कह रहे थे! उनकी जुबान लड़खड़ा रही थी ऐसे जैसे किसी ने बहुत मारा हो या बहुत पीड़ा में हो किन्तु रो न पा रहे हो! उन्होंने बताया एक व्यक्ति जिसका नाम "अनोखा" था! व्यक्तित्व का सच्चा था! लोगो को बहुत दिलचस्पी थी "अनोखा" में ! उसके आस-पास अक्सर लोगो का जमघट लगा रहता था! जाने भगवान् ने कौन सी ताकत दी थी जो कहता था सच हो ही जाता था!  एक दिन "अनोखा" सर्दिओं कि चांदनी रात में झील के किनारे बैठा हुआ बहुत गहरी सोच में डूबा हुआ था, गहन विषयो पे अकेले बैठ के सोचना बहुत अच्छा लगता था उसे! किन्तु उस दिन वो कुछ अलग ही राग में था! सोच रहा था वो एक “परी” को जो उसके जीवन में आये औऱ परवर्तित करदे सब कुछ! उसने पास में पड़ा हुआ एक पत्थर उठाया औऱ उस “परी” अपने मन मुताबिक चित्र उंकेरना शुरू कर दिया !  कुछ ही क्षणो में “परी” का चित्र बनकर तैयार हो गया! अब “अनोखा” सोचने लगा, "परी दिखने में तो ऐसी होगी किन्तु उसका व्यक्तित्व कैसा होगा?" रात बहुत हो गयी थी घर से 'माँ' कि आवाज़ आयी, " 'अनोखा' कहाँ है तू इतनी रात को नजाने कहाँ चला जाता है कौन सी दुनिया बसाएगा?" 'अनोखा' माँ कि आवाज़ सुनते ही “परी” कि तस्वीर यूँ ही बना के पत्थर पे छोड़ आया! घर पहुँचा औऱ जाकर बिस्तर पे ओंधे मुँह चिराग बुझा के लेट गया! किन्तु देर तक उस “परी” के बारे में सोचता रहा! सोचते-सोचते रात बीत गयी चिड़िया चिचियाने लगी,,मुर्गे सुबह का अलार्म देने लगे! अनोखा उठा औऱ स्नान करके उस झील कि तरफ बढ़ गया उसने देखा जिस पत्थर पे वो आकृति बना के छोड़ आया था कल रात वहाँ एक लड़की बैठी है,,सुनहरा वस्त्र पहने, लम्बे केश, नीली गहरी आँखे,, गेहुआ रंग, चेहरा आकर्षित करता हुआ! अनोखा अचंभित हुआ क्यूंकि ये हु-बा-हु वैसी थी जैसी उसने आकृति बनायीं थी या यूँ कहिये कि आकृति ने कोई जीवित रूप ले लिया हो! अनोखा एक चुम्बकीय आकर्षण से उस लड़की कि तरफ खिच गया! सवाल कई थे मन में किन्तु कुछ पूछा न गया मानो सुध खो बैठा था “अनोखा”! इतने में आवाज़ सुनायी दी, " ’परी’ कितनी देर तक तू वो झील निहार के खुसरपुसुर करेगी चल अब घर लौट चलते हैं कल फिर आ जाना" ! परी बोली, "हाँ! सखी आती हूँ"! दौड़ती हुई गुनगुनाती ‘परी’ ‘अनोखा’ को बिना कुछ बोले ओझल हो जाती है! “अनोखा” मानो ठग़मारा रह गया था उसके रूप को देख कर! ये एक अलग सी अनुभूति थी जो “अनोखा” ने जीवन में पहली बार महसूस किया था! अब प्रतिदिन “अनोखा” तड़के उठते ही पेड़ के पीछे आकर छिप जाता! “परी” के आने का इंतज़ार करता! “परी” के आने के बाद उसके गीत सुनता और “परी” को निहारता रहता!

धीरे-धीरे "अनोखा" को एहसास होने लगा जैसे कि "संवेदनाये हावी हैं उसपर" वो खुद को अक्सर “परी” कि सुध में पाता था अब ये समझ पाना “अनोखा” के लिए मुश्किल न था कि जो अनुभूति उसे हो रही है वो औऱ कुछ नहीं है वो केवल "प्रेम" है! एक दिन “परी” झील के किनारे खड़ी सखियो का गोल धारा बना कर उसमे नित्य कर रही थी “अनोखा” पेड़ के पीछे खड़ा ताक-झांक कर रहा था अचानक “परी” कि नज़र “अनोखा” पे पड़ी!  “परी” ने पूछा, "अरे!  तुम तो वोही हो ना वो उस दिन झील के पास मिले थे मुझे"! “अनोखा” ने कहा , "हाँ"! “परी” बोली, " यू ताक झांक क्यूँ कर रहे थे कुछ कहना चाहते हो?  तो बोलो! “अनोखा” कहने लगा कुछ नहीं बस यूँ ही आया था तुम्हे देख छिप गया! परी बोली, " मुझसे क्यूँ डरते हो मैं कोई शेर थोड़ा हूँ जो तुम्हे काट जाउंगी कहकर ज़ोर ज़ोर से हसने लगी! अनोखा चुपचाप “परी” कि मुस्कान देखता रहा! “परी” बहुत चंचल और मिलनसार थी! “अनोखा” भी अब उसके मित्रगण में शामिल हो गया था!  “अनोखा” के लिए “परी” जीवन का एक अहम विषय थी वो ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने कि कोशिश करता! किन्तु “परी” बात अक्सर टाल देती थी! “परी” ने जितना भी “अनोखा” के बारे में जाना था उतना काफी था “परी” के लिए! वास्तविकता थी ये कि “अनोखा” एक अच्छा व्यक्ति था! “परी” और “अनोखा” दोनों अब एक ही नाव पर सवार थे! एक अपूर्णता थी जो अब पूर्णता में बदल चुकी थी! “अनोखा” और “परी” दोनों को अहसास था कि वो केवल एक दूसरे के लिए ही बने हैं दोनों उसी झील के किनारे उन्ही पेड़ो कि छाँव में घंटो बैठ के अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे और नए नए सपने बुनते! दोनों ही प्रेम के सागर में गोते लगा रहे थे! वे चाहते थे कि उनका प्रेम एक ऐसी कथा बने जिससे प्रेरित हो धरा का हर प्राणी! अब अनोखा और परी कि कहानी सब कोई जानने लगा था! हर किसी को दिलचस्पी होने लगी थी इस प्रेम में! कुछ ईर्ष्या करते तो कुछ उनके लिए दुआ करते! दिन बिताते रहे अहसास गहराता गया अब मुश्किल हो चला था एक दूसरे के बिना रहना! किन्तु भविष्य कौन देख पाया है! हम जो चाहें हमें वैसा ही मिले कौन जानता है!

एक दिन “परी उस झील पर “अनोखा से मिलने नहीं आयी! “अनोखा बहुत बेचैन था “परी को न देखकर! “अनोखा को मालूम भी न था कि आखिर “परी रहती कहाँ हैं! वो केवल “परी का नाम, स्वभाव और प्रेम को जानता था जो "परी" उससे से करती थी! अगले दिन भी ऐसा ही हुआ “परी झील पर नही पहुंची अब जब कई दिन हो गए तो ”अनोखा ने निर्णय लिया कि वो परी को तलाशने जाएगा,,उसने “परी का चित्र बनाया और उसे लेकर निकल पड़ा उस दिशा में जिस ओर उसने “परी को अक्सर जाते देखा था! "अनोखा" बहुत से गाँव में गया औऱ लोगो से पूछताछ कि किन्तु कुछ मालूम न चला! “अनोखा को लगा कहीं वो सच में देव लोक से तो नहीं आयी थी? फिर अपना कदम बढ़ाया औऱ एक कबीले में जा पहुंचा वहाँ चित्र दिखाने पर पता चला कि "परी" उन्ही के गाँव के किसी शुद्र परिवार कि बिटिया थी! किन्तु तकरीबन एक माह पहले बादल फटने से गाँव में भारी तबाही आ गयी औऱ बहुत से लोगो को निगल गयी! उसमे से परी औऱ उसका परिवार भी एक था! हमें परी का शव मिला तो हमने उसका अंतिम संस्कार कर दिया! अब उसकी अस्थियां पड़ी हैं हमारे पास जब गंगा जी जायेंगे तो बहा देंगे! अनोखा के आँख से अश्क कि धार बह पड़ी वो फूट-फूट कर रोने लगा! उसकी पीड़ा का अंदाज़ा लगा पाना किसी के लिए भी मुमकिन नही था! उसने आंसू पोछा औऱ परी कि अस्थियां मांगी! परी कि अस्थिओं को लेकर घर वापिस आ गया! उसने वो अस्थियां गंगा में प्रवाहित नही कि वो जब भी रोता है तो अस्थियाओ का घड़ा हाथ में लेकर उसमे आंसू गिरा देता है! परी कि अस्थियां डूब जाती हैं उन आंसुओ में उस वियोग पीड़ा में जो अनोखा आज भी महसूस करता है! अनोखा बिल्कुल अकेला है इस दुनिया में परी कि अस्थिओं के साथ जिन्दा है औऱ वो चाहता है कि जब वो मरे तो परी कि राख के साथ उसे मिलाकर पूर्ण करके प्रवाहित किया जाए!

इतना कहते ही दादा जी सुबक - सुबक कर रोने लगे! 'परी' के नाम के साथ दादा जी कि सांस रुकते हुए महसूस कि थी मैंने! वो लाल कपड़े में लिपटा हुआ घड़ा दादा जी के घर में देखा था मैंने एक रोज़! उसके अलावा दादा जी के पास घर में एक खटिया भी थी!  ये एक अधूरी प्रेम कहानी थी! जो दादा जी ने हमें सुनायी थी! अनोखा औऱ परी कि कहानी अधूरी प्रेम कहानी!
 
लेखिका : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 1/11/2013

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