Friday, January 10, 2014

"उदासियाँ"

उदासियो ने अपने कठोर पंजो में
दबोच लिया है खुशियो कि
बलखाती अठिलाती तितलियों को
घुटती जा रही हैं साँसे मुट्ठियों में कैद हो
परन्तु जीवन अपनी रफ़्तार में
आगे कि ओर....
बिना रुके बिना थके बढ़ रहा है
पहर चुंटीओ कि तरह रेंगता हुआ
पत्थर कि खुरदरी शिला पर चढ़ता जा रहा है
न दिन घटता न ही रात छोटी होती
चिंता कि लकीरे माथे पर
निरंतर खिंचती जा रही है 
कलह पसरता जा रहा है
अपना पैर औकात से बाहर
संयम टूटता बिखरता उड़ता पड़ता
बौराया सा हो गया है
बर्फ जम गयी है सोच कि
गनगनाती निर्झर झरने में
दबता जा रहा है उम्र
कुंठा के कंटियाये बजड़ियो के नीचे
आँखो कि चमक को कब्जियाती जा रही है
पुचकारते हुए काजल सी भी काली छईयां.. 
चहरे कि अरगनी पर टंग गयी हैं झुर्रियां
और झूल रही हैं बिन सावन भादव देखे
बैठी हुई कोमल लालियो के लाल पीढ़े पर...
आगे बढ़ती हुई उदासियाँ
छीनती जा रही है इक इक करके
मुझे सम्पूर्ण करता हुआ प्रत्येक साधन
और
ये जानते हुए भी परिस्थितियां देती जा रही हैं 
खुशियो से ज्यादा इन
बर्बर उदासियो को
जीवन के सिंहासन पर अहम स्थान!! 


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 10th Jan, 2014

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