Tuesday, January 28, 2014

"मैं जीवन नायिका"


बहुत चुनौतियां रही
अनचाहे हादसे गुजरे
हितकर बनकर छलने वाले मिले
मित्र मिले थोड़ा अच्छे अधिक स्वार्थी से
रिश्ते मिले अपने से
लेकिन थोपना ये भी नहीं भूले
अपना कहा हुआ शब्द....

स्वप्न देखे मगर वो
उस रूप में मिले ही नहीं
और जब पूरे हुए तो भी अधूरे से...

मंशा थी कुछ अलग करने कि
इक वक़्त पे आकर
हौसला ही पस्त हो गया...

जीती कब ये तो याद नहीं मुझे
हारी कब इसका संक्षेप विवरण है
किन्तु पढ़ने के लिए वक़्त नहीं
कहानी हार कि पढ़े कौन?

इन सब उथल-पुथल ने सिखाया मुझे
झेलते रहना, मज़बूत बनना...

थकावट तो बहुत हो गयी है
किन्तु अभी रात नहीं हुई सोने को..

दिन मुझे बाध्य कर देता है
सक्षम बनकर बार बार
अखाड़े में उतर जाने को
और कहने को कि हूँ
आज भी मैं ही नायिका
भले ही धराशायी हूँ
परन्तु फिर से
कुछ भी झेलने के लिए तैयार हूँ
पहले से ज्यादा सही तौर पर..

क्यूंकि जिंदगी आज भी चल रही है
बिना रुके अधाधुंध सी !!



रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'





2 comments:

  1. दिन मुझे बाध्य कर देता है
    सक्षम बनकर बार बार
    अखाड़े में उतर जाने को
    और कहने को कि हूँ
    आज भी मैं ही नायिका

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  2. जिंदगी का नाम चलना है ...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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