मैंने तुम्हारी याद में
वो सब किया
जो तुम्हे अच्छा लगे
मगर टूटे हुए कांच को
जोड़ पाना मुमकिन न था...
तुम्हारा अरमान था
आस्मां का रोशन सा चाँद
औऱ मेरे लिए इक तारा भी
तोड़ पाना मुमकिन न था...
मैंने तुम्हारे हवाले कर दिया था
जिंदगी से रूह तक
सांस हाथो में थमा देना
मगर मुमकिन न था
मैंने मिटा दिया था
तुझको पाकर अपनी पहचान तक
हाँ! मगर बीता कल मिटा पाना
ज़रा मुमकिन न था
तुझसे वफ़ा कि इस कदर
राह-ए-इश्क़ में हमनशीं
तेरे बिना जीना भी कठिन
मर जाना भी मुमकिन न था
कैसे छोड़ती तेरा आँगन
रुस्वाइयों के बावज़ूद भी
पर पड़े थे तेरी जेब में
उड़ पाना भी मुमकिन न था
नज़रे मिलाके हक़ मांगती भी
तो बता किस शक्ल से
हैसियत थी कौड़ियो कि
कुछ कह पाना भी मुमकिन न था
तूही मसीहा था मेरा
औऱ हर दुआ थी तुझसे जुड़ी
ऐसे में खुदा के सर
इल्जाम दे पाना भी मुमकिन न था..
सारा जहाँ था जिस तरफ
जब तू भी खड़ा मिला वहीँ
कितनी तनहा हुई थी उस पल
ये बयां कर पाना भी मुमकिन न था..
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
वो सब किया
जो तुम्हे अच्छा लगे
मगर टूटे हुए कांच को
जोड़ पाना मुमकिन न था...
तुम्हारा अरमान था
आस्मां का रोशन सा चाँद
औऱ मेरे लिए इक तारा भी
तोड़ पाना मुमकिन न था...
मैंने तुम्हारे हवाले कर दिया था
जिंदगी से रूह तक
सांस हाथो में थमा देना
मगर मुमकिन न था
मैंने मिटा दिया था
तुझको पाकर अपनी पहचान तक
हाँ! मगर बीता कल मिटा पाना
ज़रा मुमकिन न था
तुझसे वफ़ा कि इस कदर
राह-ए-इश्क़ में हमनशीं
तेरे बिना जीना भी कठिन
मर जाना भी मुमकिन न था
कैसे छोड़ती तेरा आँगन
रुस्वाइयों के बावज़ूद भी
पर पड़े थे तेरी जेब में
उड़ पाना भी मुमकिन न था
नज़रे मिलाके हक़ मांगती भी
तो बता किस शक्ल से
हैसियत थी कौड़ियो कि
कुछ कह पाना भी मुमकिन न था
तूही मसीहा था मेरा
औऱ हर दुआ थी तुझसे जुड़ी
ऐसे में खुदा के सर
इल्जाम दे पाना भी मुमकिन न था..
सारा जहाँ था जिस तरफ
जब तू भी खड़ा मिला वहीँ
कितनी तनहा हुई थी उस पल
ये बयां कर पाना भी मुमकिन न था..
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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