मौके ने जिंदादिली ला दी है
सोचती हूँ अब कोई चूक न हो
गर्मियों कि तपिश में ठंडाई हो
सूरज कि नंगी सी धूप न हो
रूठ ना जाए नसीब का जिद्दी बच्चा
कोशिश के खिलौने में टूक न हो
कदम-कदम मुझको सम्भालते रहना
समझ के नाम पे ज्यादा छूट न हो
यकीन पे तेरे खरी उतरूं ख्वाइश है
हमारे रिश्ते में दीवार-ए-झूठ न हो
बहुत मुश्किल से ज़रा बचा के लायी हूँ
दुआ करुँगी अब कोई टूट-फूट न हो
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 28/01/2014
सोचती हूँ अब कोई चूक न हो
गर्मियों कि तपिश में ठंडाई हो
सूरज कि नंगी सी धूप न हो
रूठ ना जाए नसीब का जिद्दी बच्चा
कोशिश के खिलौने में टूक न हो
कदम-कदम मुझको सम्भालते रहना
समझ के नाम पे ज्यादा छूट न हो
यकीन पे तेरे खरी उतरूं ख्वाइश है
हमारे रिश्ते में दीवार-ए-झूठ न हो
बहुत मुश्किल से ज़रा बचा के लायी हूँ
दुआ करुँगी अब कोई टूट-फूट न हो
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 28/01/2014
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