Friday, January 10, 2014

!!हसना चाहती हूँ!!


हसना चाहती हूँ आज मैं
अब बहुत दिन गुज़रे
गमो का कोपला ढ़ोते ढ़ोते
भिनभिनाती तकलीफो को हांकते हांकते
कंधो पर लादे लादे पहाड़ चिंता का
दफ़न कर देना चाहती हूँ खुश्क अवसाद
खिलखिलाना है मुझे बेवजह ही
प्रकृति के बीच खुले वादियो में जा
किसी से इजाजत लिए बिना ही
पोर-पोर मन का खिला देना चाहती हूँ ..


सुनो ! कोई रोकना भी मत मुझे
क्यूंकि मैं नहीं बदलूंगी अपना विचार


गिर गये हैं खुशियो के पात
गर्म लू कि थपेड़ो से चोट खाकर
आशाओ कि बगिया पूर्णतया मुरझा गयी है
अब फूल-पात जमकर भिगा देना चाहती हूँ..

वो बचपन कि लोटपोट कर देती हुई
आज मासूम निर्मल हसी से मिली मैं 
नज़ाने कहाँ से आती थी इतनी हास्यपद बातें
सखियो के झुंडो में ज़रा कुछ पाकर
ठेठठा-ठेठठा लाल हो जाना मेरा ....

मैं फिर से मुख पे वो हसी सज़ा लेना चाहती हूँ
आज अश्को को सबक सीखा देना चाहती हूँ
मीलो दूर गमो को उठा कर बहा देना चाहती हूँ

मैं आज हसना चाहती हूँ बेवजह ही..
कोई रोकना मत !!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 10th Jan, 2014

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