मैं बन जोगन यूँ वन-वन भटकूँ
तेरे जिह्वा के हर शब्द में अटकूँ
सीप बन उतरूं हरी पात छवि पर
लिओ जो हाथ मोहे मुट्ठी से छटकूँ
मोम बनु तो मोहे तपन पिघलाय
आग बनी हर चूल्हे में धधकूं
झूठ बनू तो गंध नेक न जाय
सच बनू तो हर नज़र में खटकूँ
का करूँ समझ किधर बीजू मैं
कौन से बूझ के भीतर बजकुँ
हर मन पत्थर के शिला मतिन है
पाय कहाँ सज्ञानी बोध में लटकूँ
सुबेर सपना मुर्गे कि बाग़ तोड़ दिहिन
रात थकावट के चोट से चटकूँ
तोहरी याद में लीन भई हम
बूँद-बूँद आंस लई उंगली से झटकूँ
हसी हमरी खो गयी कौन गली मा
ढूंढे खातिर हर शहर में भटकूँ
पाऊँ धोका का भेट रह रहिके
माथा अइसन चट्टान पर पटकूँ
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 06 January, 2014
तेरे जिह्वा के हर शब्द में अटकूँ
सीप बन उतरूं हरी पात छवि पर
लिओ जो हाथ मोहे मुट्ठी से छटकूँ
मोम बनु तो मोहे तपन पिघलाय
आग बनी हर चूल्हे में धधकूं
झूठ बनू तो गंध नेक न जाय
सच बनू तो हर नज़र में खटकूँ
का करूँ समझ किधर बीजू मैं
कौन से बूझ के भीतर बजकुँ
हर मन पत्थर के शिला मतिन है
पाय कहाँ सज्ञानी बोध में लटकूँ
सुबेर सपना मुर्गे कि बाग़ तोड़ दिहिन
रात थकावट के चोट से चटकूँ
तोहरी याद में लीन भई हम
बूँद-बूँद आंस लई उंगली से झटकूँ
हसी हमरी खो गयी कौन गली मा
ढूंढे खातिर हर शहर में भटकूँ
पाऊँ धोका का भेट रह रहिके
माथा अइसन चट्टान पर पटकूँ
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 06 January, 2014
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