Saturday, January 25, 2014

"ग़ज़ल लव्ज़-ए-हयात"


कह दो खुशियो को दुपट्टा सम्भाले अपना
मुझे अब नींद आती है तो गम कि निगरानी में
 
कई हादसे मिलते रहे रफ्ता-रफ्ता सफ़र में
कंपा डाला सीना.. इतना दर्द था मेरी कहानी में  

शिकारी का जाल खाली था आजमाइश के बाद भी
जहर दे के मार डाला जितनी मछली थी पानी में 

लड़ती रही गरीबी से इक आह भी निकली कभी
बच्चे कि भूख ने डाल दिया मगर मुझको हैरानी में  

सौ पाप किये फिर चल दिए तीरथ का जिक्र करके
गन्दगी जन्मो कि धो डाली पाक़ गंगा के पानी में 

कुछ कागज़ के टुकड़ो ने मिटा डाला हर नाता
इंसानियत तक को दफना डाला हसरतो कि मेजबानी में  

उजाला कर लिया संगदिल मौसम के खौफ से
अँधेरा ताकता रहा मुँह उठा मेरी रोशनदानी में  

गलती से कि गलती को बदजुबानी से नवाज़ने वालो
इक बार झाँक कर देख लो अपनी भी गिरहबानी में

आफताब का नूर मिला खोकर बचपन कि नादानियाँ
कितने ख्वाब जलाये मगर मैंने पहुँच कर जवानी में 

अक्सर तुम पाओगे मेरे लव्ज़--हयात में 'श्लोक'
सादगी, हकीकत, उम्मीद कि रोशनी ग़ज़ल कि निशानी में...
 
 
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 25/01/2014

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