Wednesday, January 1, 2014

"विरह"

मैंने तो गहरी

संवेदनाओ का बीज बोया था

आत्मा कि ज़मीन पर 

अंकुरित होकर अब वो

मोहक पौधे का रूप ले चुके थे

निकलने लगे थे उसमे

प्रेम के महकते हुए पुष्प

किन्तु तुमने जोत दिया

आशाओ का खेत

लगा दिया उसमे

विरह के दानवी वृक्ष

और अब

लगातार सींचते जा रहे हो

इसकी जड़ो को कुंठाओ से

भावनाओ को ठूंठ बनाकर !!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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