Thursday, January 2, 2014

"भूख"

कैसे भूल सकती हूँ?
गरीबी का हुक्का पीते वो दिन
अधटूटा माटी का दरारी दीवार
और तूफ़ान के साथ उड़ गया
पुराने छपरे का ज्यातर हिस्सा...
टपकते बूँद के नीचे मज़बूरी में भीगना
और मौसम को कोसते रहना
टूटी खटिया पर रात भर
बिना सोये करवट बदलना
भाई का रोना खाली पेट में उठती उथल-पुथल से
खाने के लिए जिद्द बाँध देना
चूल्हे का कई-कई हफ्ते लिपा पुता यूँ पड़े रहना
कौड़ी-कौड़ी कि मोहताज़ग़ी,
नीक-नेउर खिलाने के लिए
नइहर जाने के आमंत्रण का इंतज़ार..
पाला पड़ते ठण्ड में नंगे पाँव नन्ही का स्कूल जाना..
माँ... वो फटा हुआ तेरा आँचल
आँखों से आंसुओ कि धार में टपकती तेरी बेबसी
लटका हुआ तेरा मासूम चेहरा
कैसे भूल सकती हूँ?

आज सम्पन्नता के शिखर पर पहुँच कर
जब वो बीते दिन कि तरफ पलटती हूँ
तो वो परिस्थिति झिझका देती है मुझे

भूख और गरीबी दयु रोजी न करें!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 03/01/2014

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!