जुड़ना चाहती हूँ,
मैं तुमसे..
किन्तु खुद खोखली हूँ,
इक बांस हूँ!
उखाड़ दिया है जमीन से,
अंधविश्वासिओ ने,
क्या तुम अपने आँगन में स्थान दोगे?
यदि संभव है,
तो मैं बहुत काम दूंगी,
छप्पर में लगूंगी,
फिर पानी पाथर से बचाऊंगी,
तूफ़ान में भी स्थिर रहूंगी,
मेरी जड़े यदि तुमने जमीन में लगा दी,
तो मैं फ़ैल कर तुम्हे ढाप लुंगी,
छाया दूंगी,
चूल्हे में ईंधन बन जलूँगी,
तुमसे कुछ न मांगूंगी,
हरी-भरी रहूंगी,
यहाँ रही तो जिन्दा काट देंगे,
सूखने से पहले ही,
पीड़ा होगी मुझे,
यदि संभव है तो
तुम ले चलो.....
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