Thursday, January 23, 2014

"अंतिम"

नरम हिस्सा था
मेरी संवेदनाओ का
जिसे कुल्हाड़ियों से काटा गया
छिनगाया गया भावनाओ का
जीवित हरियाई डाल..
परन्तु सोचा नहीं उसने
कि आखिर कितने प्रहार के लिए
शक्षम है वो नन्हा वृक्ष
चिंताओ के दीमक ने
जिसका पहले ही चमड़ा
उगते-बुझते समय के साथ
कुरेदा हुआ है..
उसपे इक आखिरी वार था
सीधा जड़ो कि नसो में जा लगा
जो खुद को जैसे-तैसे मजबूती से बांधे
हुए था बंज़र मिट्ठी के साथ
और
फिर ना रहा कोई अंतिम शब्द
भी कहने को!!



रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 23/01/2014

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