Friday, January 24, 2014

"अब न पूछो कि भय काहे"

अब न पूछो कि भय काहे
देह जबसे नारी का पाये
घूर-घूर देखे नर जात सब
हमरा सब अभिमान उड़ाये

कौन स्वप्न का हम सजोई
इक हाथ पायी दूजे हाथ खोयी
आपन आभा बनाय माटी पर
लात से घसर कय हम ही मिटोई

अपने इच्छा का हमपर लादे
हमरा हिस्सा खींच के भागे
सब नाता कठोर है हम से
हम ही भाग्य बन रहे अभागे

हम सीता सा बनबास बिताए
सती बन जान यमराज से लाये
कभी देवी शक्ति बनाय कर पूजे
कभी अहल्या सा मोहे छल जाए

केह से बतियाई आपन हाल हम
खुसुर-पुसुर मसला न बन जाय
येही जीवन कय कटु सत्य है हमरे
पाकते धान तो कोई काट लय जाय !!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 25/01/2014

 

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