Tuesday, January 28, 2014

"पहले जैसा"

आपूर्तियों को पूर्ण करके
पहले जैसा करना चाहती हूँ
मस्त-मौला सा वही पहर
पा लेना चाहती हूँ कैसे भी  
खडूसियत से नवाज़ा
रोबीला चरित्र का,
चौकन्ने कद-काठी का वही अक्स
उतार देना चाहती हूँ वापिस तुममे
बर्फ कि सिल्लियो सी पिघलती हुई
हमारे मध्य कि भाव-भंगिमाएं
चुन-चुन के अनुराग के
सिल्की मजबूत धागे में पिरौना है
साहेब जैसे उस इंसान का टोर
उसे उपहार में भेट कर देना चाहती हूँ
नरम ह्रदय में अनजाने में
जो घात लगने से घाव हुआ है
भरना चाहती हूँ उसे किसी भी मूल्य पे 
लौटाना चाहती हूँ
तुम्हारे चुरखुने सपने को जोड़ के
आवरण के साथ
जिसपे कभी प्राकृतिक या आप्राकृतिक
हादसो का साया भी न पड़ सके
तुम्हारे फौलादी इरादे
जो चट्टान का सीना फाड़
बंद रास्ते खोल सकता है
ढूंढने आयी हूँ....
पूरे विश्वास के साथ
जिद्द में हूँ कैसे भी
उड़ी हुई मुस्कराहट
वापिस तुम्हारे होंठो कि
अरगनी पर लाकर फैला दूंगी
भरम में मत रहना
कि ये कोई अहसान है
नहीं.....
मेरी ख़ुशी को पाने का
इख्तियार किया हुआ
नवीन और स्पष्ट रास्ता है
क्यूंकि
झूठ नहीं था कही हुई तमाम बातो में
चट से निकला शब्द......
तुमसे ही तो वाबस्ता है लम्हा-लम्हा जिंदगी मेरी !!! 


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 28th Jan, 2014

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