Saturday, January 11, 2014

"हवाएं रुख पलट के आयीं आँधियाँ बन गयी"

हवाएं रुख पलट के आयीं आँधियाँ बन गयी
जस्बात तेरे हौज़रे में जाकर बांदियाँ बन गयी

साये छोड़ कर लिपट गए गुस्ताख़ अंधेरो से
छनकती पांजेब मेरे पैरो कि बेड़ियाँ बन गयी

तारे टूट कर बिखरे मन्नत कि आबरू के लिए
हाल-ए-दिल हर जुबां कि कहानियाँ बन गयी

गुलाब कभी जो बिछ जाते थे राहो में हमको देखकर
उन्ही के कांटे पाँव के जख्मो कि निशानियाँ बन गयी

ठोकर लगाती कश्मकश में उलझ के सिमट के रह गयी
सकून तन्हाईयो के महफ़िल कि रानियाँ बन गयी..

पाला हैं आँखों में अश्को को  'श्लोक'  बड़े ईमान से
वज़ूद-ए-मुस्कान जिंदगी के लिए तभी से सवालियाँ बन गयी

(c) परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 11/01/2014

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