नशा,मदहोशियाँ दिल के हालात में हैं
कुछ खासियत तो 'श्लोक' कि जात में हैं
अपना घर संभालू फिर शहर कि सोचूंगी
अफरा-तफरी तो पूरी कायनात में हैं
कोई अलग नहीं मिलता मुफलिसी में
शकल से रंगीन तो हर बारात में हैं
कौन रखता है अपनी वालिद कि खबर यूँही
वहशी नज़र तो सिर्फ जायदाद में हैं
मुझको तो सब कुछ बंधा हुआ सा लगा
सब कहते हैं कि हम मुल्क-ए-आज़ाद में हैं
हाथ छत कि दीवारो को भी न लगा सके
बात करते हैं कि जैसे आकाश में हैं
कल लड़के आज सीने से लगाया उसने
पहले से ज्यादा मिठास उसकी आवाज़ में हैं
कतरे पंख कि खबर तो परिंदो को है
निगाहो के जस्बे ने कहा वो परवाज़ में हैं
सहम के गुजरी औरत मेरी गली से
जैसे कोई बाज़ नोचने कि घात में हैं
कुछ अलग हुआ तो नसीबो का दोष कैसे
हम अपने कर्मो कि रची हुई करामात में हैं
हमको ज़माने के रंग-ढंग अजीब से लगे
हो सकता है आज भी हम पुराने खयालात में हैं
हम खुद को जुदा करते हैं हादसे धकेल देते हैं
जताने कि आरज़ू है हम भी शामिल जमात में हैं
सम्भाल के चलते हैं कोई ठोकर न मार दे फिर
रिसियाए खिसियाये बाशिंदे ही आस-पास में हैं
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 25th Jan, 2014
कुछ खासियत तो 'श्लोक' कि जात में हैं
अपना घर संभालू फिर शहर कि सोचूंगी
अफरा-तफरी तो पूरी कायनात में हैं
कोई अलग नहीं मिलता मुफलिसी में
शकल से रंगीन तो हर बारात में हैं
कौन रखता है अपनी वालिद कि खबर यूँही
वहशी नज़र तो सिर्फ जायदाद में हैं
मुझको तो सब कुछ बंधा हुआ सा लगा
सब कहते हैं कि हम मुल्क-ए-आज़ाद में हैं
हाथ छत कि दीवारो को भी न लगा सके
बात करते हैं कि जैसे आकाश में हैं
कल लड़के आज सीने से लगाया उसने
पहले से ज्यादा मिठास उसकी आवाज़ में हैं
कतरे पंख कि खबर तो परिंदो को है
निगाहो के जस्बे ने कहा वो परवाज़ में हैं
सहम के गुजरी औरत मेरी गली से
जैसे कोई बाज़ नोचने कि घात में हैं
कुछ अलग हुआ तो नसीबो का दोष कैसे
हम अपने कर्मो कि रची हुई करामात में हैं
हमको ज़माने के रंग-ढंग अजीब से लगे
हो सकता है आज भी हम पुराने खयालात में हैं
हम खुद को जुदा करते हैं हादसे धकेल देते हैं
जताने कि आरज़ू है हम भी शामिल जमात में हैं
सम्भाल के चलते हैं कोई ठोकर न मार दे फिर
रिसियाए खिसियाये बाशिंदे ही आस-पास में हैं
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 25th Jan, 2014
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