अच्छी लगती है सर्दियाँ
जब कोहरे झिसियाते हैं
पलकों पर सफ़ेद फाहा सा छोड़ जाते हैं
धूप कई दिनों तक
धरती को छूता तक नहीं
शीतलहरों का आना औऱ
आकर बर्फ बना जाना नदियो को
ओला पड़ना कश्मीर कि वादिओं में
हिमालय कि चोटियों का श्वेत हो जाना
सुंदर दृश्य भान पड़ता है हर दिशा का..
किन्तु ऐसे में ही जब नज़र पड़ती है
फूटपाथ पर सोये औऱ
उसे आशियाना बनाये
ठिठुरते गरीबो पर
जो हाड़ को जमा देने वाली
सर्दियों को कोसते रहते हैं
सूरज के खिलने कि कामना करते हैं
तब मौसम कि निर्दयी मार
मुझे खिझाने लगती है..
मुजफ्फरनगर दंगा पीडितो के
शिविरो का ध्यान आता है
अपनों को खोने का दर्द रिस्ता हैं
आज भी जिनकी मासूम आँखों से
जो घर से बेघर हो चुके हैं
अलाव कि कमगिस्ति के साथ-साथ,
मुकम्मल साधन नहीं जिनके पास
चिर्राती ठण्ड में गर्म कपड़ो तक का
मैं भीग जाती हूँ
उस समय पीड़ितो कि अथाह पीड़ा से..
सच कहूँ?
तब कोई अर्थ नही रह जाता
सर्दियों कि सुंदर अनुभूति का मेरे लिए भी!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 11th Jan, 2014
जब कोहरे झिसियाते हैं
पलकों पर सफ़ेद फाहा सा छोड़ जाते हैं
धूप कई दिनों तक
धरती को छूता तक नहीं
शीतलहरों का आना औऱ
आकर बर्फ बना जाना नदियो को
ओला पड़ना कश्मीर कि वादिओं में
हिमालय कि चोटियों का श्वेत हो जाना
सुंदर दृश्य भान पड़ता है हर दिशा का..
किन्तु ऐसे में ही जब नज़र पड़ती है
फूटपाथ पर सोये औऱ
उसे आशियाना बनाये
ठिठुरते गरीबो पर
जो हाड़ को जमा देने वाली
सर्दियों को कोसते रहते हैं
सूरज के खिलने कि कामना करते हैं
तब मौसम कि निर्दयी मार
मुझे खिझाने लगती है..
मुजफ्फरनगर दंगा पीडितो के
शिविरो का ध्यान आता है
अपनों को खोने का दर्द रिस्ता हैं
आज भी जिनकी मासूम आँखों से
जो घर से बेघर हो चुके हैं
अलाव कि कमगिस्ति के साथ-साथ,
मुकम्मल साधन नहीं जिनके पास
चिर्राती ठण्ड में गर्म कपड़ो तक का
मैं भीग जाती हूँ
उस समय पीड़ितो कि अथाह पीड़ा से..
सच कहूँ?
तब कोई अर्थ नही रह जाता
सर्दियों कि सुंदर अनुभूति का मेरे लिए भी!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 11th Jan, 2014
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