लो समेट इसकदर
हमें अपने आग़ोश
में
पाएं खुद को
जन्नत में आये
जब होश में
सहिलो को कहो
दरिया से फासला
बढ़ा ले
कश्ती छोड़ कर
उतर जायेंगे हम
मौज में
फ़िज़ाओ रेशमी आँचल सम्भाल
लो अपना
दिए कि आग
धधक पड़ी है
आज जोश में
ए गुल आज
यक़ीनन तुझे जलन
होगी
हम नामज़द हो गए
है खुशुबू-ए-सरफ़रोश में
आज कि बरसात
मेरे वास्ते आयी
है ज़मी चूमने
बिखेर गयी बर्फ
पर्वत के सीने
पर मौसम-ए-पोष में
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 22/01/2014
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