Tuesday, January 7, 2014

वक़्त के कब्र में दफ़न हर सच्ची कहानी है.....

ये दुनिया इतनी झूठी है दिखावे कि दीवानी है
आँखो से लहू निकला वो बोल बैठे कि पानी है

जरकन कि चमक देखा खरीद लिया समझ हीरा 
तजुर्बे कि कमी है ये या फिर उम्र कि नादानी है

नज़रिये का फेर है यारो बात और कुछ भी नहीं है
किसी कि सीरत से यारी है किसी को सूरत प्यारी है

नुमाइश ही तो करती है ये कोठियाँ अमीरो कि
अंदर झाँख कर देखो फकीरो से भी भिखारी हैं

किसके बीच साबित करूँ अपनी हुनर कि शोखियाँ
जिसकी जेब खनकती हैं आज वही तो ज्ञानी है

लदा है बारूद सीने में जुबां पर प्रेम कि बानी है
बेमान वक़्त के कब्र में दफ़न हर सच्ची कहानी है

मिलता नहीं ग़ज़लो को भी अखबारों में पहला पेज,
बंद किसी डायरी कि 'श्लोक ' से ये शिकायत पुरानी है



ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 07th Jan, 2014

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