Tuesday, January 21, 2014

वेदना.............

 

क्या कहूं तुम्हे?
डर लगता है अब
कहीं तुम समझ ही नहीं पाये
मेरे लड़खड़ाते जुबान कि
थरथराती भाषा तो..
कहीं वो नमकीनी बूँद को तुमने
देखकर भी अनदेखा कर दिया
या उसे छलावे का
कोई रूपक बना दिया तो..
निंदा के घोड़े पर चढ़ा
चाबुक कसने लगे तो फिर पीड़ा होगी..
अज़ीब बात है
तूफ़ान भी इतनी मिठास से आता है
पहली बार जाना और बूझा मैंने
शायद! तुम्हे पाकर
बहुत मगरूर हो गयी थी
जिंदगी देखना चाहती थी
हारा हुआ मुझे
लो जिंदगी को मुबारक हो....
आज मैं हार गयी वो सब कुछ जो मेरा था
तुम्हारे साथ ही
जीने का एहसास भी मरने का दर्द भी!!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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