Monday, January 6, 2014

खुदको खोने का उपहार दूँगा....

वो जाते हुए कह गया मुझे
अगले जनम स्वप्न साकार दूँगा
इस जनम तू मैली हो गयी गंगा
उस जनम तोहे मुझमे विस्तार दूँगा !

तू काट जीवन इसी पीड़ा में
मैं ना जियूँगा ना तुझे आबाद करूँगा
निकलूंगा नहीं भीतर से बाहर
ना ही तुझको स्वीकार करूँगा !

तू कैसे बुझायेगी प्रीत का दीपक
मैं प्रेम का आग पसार दूँगा 
तू भीगेगी खड़ी किनारे पर भी
सारी विवशता तुझपे उलझार दूँगा !

घोर-घोर सोचेगी मोहे गीतो में गायेगी
सोच भला वो पगली लड़की मुझको कैसे भुलाएगी
प्रकृति के हर कोने को स्पर्श से अपना कर लूँगा 
हर झोके में खुद के चाहत कि महक उतार दूँगा !

तू मेरे मुक्तक कि बोलो में है  
कविताओ के शब्दो में है शामिल
शायरी के दर्दी बयान में तू ही तू है
कम कथन नही हैं मेरे पास ''मैं कैसे भी तुझे पुकार लूँगा !

वृक्ष कि छाया बन कर प्यारी
चुभती धूप से तुझे बचाऊंगा
तुझसे दूरी का नाप-तोल
फिर भी कम न कर पाउँगा
मैं अपनी कारतूसी काया पर संयम का पानी डार लूँगा !

तारे टूटे तो मांगना मुझको
चाँद बीच ताड़ना मुझे, टटोलते रहना अंधियारे में,
कभी ताबीज़ में देखना तस्वीर, ढूँढना मुझे सिरहाने में  
मैं इस युग में तुझको आजीवन खुदको खोने का उपहार दूँगा !



 
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 07/01/2014

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