Thursday, January 2, 2014

हो सके तो इस शहर से ले जाइयेगा हमें


हो सके तो इस शहर से ले जाइयेगा हमें
हम हिना को हथेलियो में रख के गाढ़ा कर लेंगे..
 
तेरे ठोकरो को सज़दा करेंगे ता-उम्र इश्क़ में
शोहरत कि महफ़िलो से किनारा कर लेंगे
 
कुछ अंजाम दे जाओ सिवाय बेवफाई के
ये बाशिंदे वरना हमें इंसान से अंगारा कर देंगे
 
हर नज़र कुरेदती रहेगी जख्म नासूर सीने का,
पसीने का पानी भी गुनाह--तिजारा कर देंगे
 
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 3/01/2014

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