हो सके तो
इस शहर से
ले जाइयेगा हमें
हम हिना को
हथेलियो में रख
के गाढ़ा कर
लेंगे..
तेरे ठोकरो को सज़दा
करेंगे ता-उम्र
इश्क़ में
शोहरत कि महफ़िलो
से किनारा कर
लेंगे
कुछ अंजाम दे जाओ
सिवाय बेवफाई के
ये बाशिंदे वरना हमें
इंसान से अंगारा
कर देंगे
हर नज़र कुरेदती
रहेगी जख्म नासूर
सीने का,
पसीने का पानी
भी गुनाह-ए-तिजारा कर देंगे
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 3/01/2014
Dated : 3/01/2014
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