Sunday, January 26, 2014

"धोखा है पुरुषार्थ का"

तुम कहाँ अभी सच के पाले पड़े हो
धोखा है पुरुषार्थ का जिसके सहारे खड़े हो

अपनी नंगाईयो में जीने कहाँ दिया हमको
सारा सकून तबियत का उछाले खड़े हो

हमने ही बक्शा है वो ओंदा तुम्हे खैरात में
भरम पाल लिया तुमने कि खुदा से बड़े हो

सम्भाला है औरत ने ही तुम्हे हर दौर में
बचपन, जवानी बुढ़ापे में जब भी गिरे हो

उत्पीड़न में जीती रही नारी बिना शिकवा
गुमान आ गया तुममे कि हिम्मतवाले बड़े हो

थूकती हूँ मैं तुम्हारे घिनौने नीयत पे हर सू
तुम आज भी घूल से हमारे कदमो तले हो....



ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 27th Jan, 2014

2 comments:

  1. कल 28/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. waah waah.. kya baat h pari ji..jabardast

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