ये आलम, ये मौसम और ये बरसात का पानी
फ़िज़ाओ में रौनके और ये हवाएं रूमानी...
दिल की बात लबो पर ले आऊँ या चुप रहूँ
छेड़ दी है साज़ तुमने तो अब सुनो मेरी कहानी...
नींदें तेरी गुलाम हो रही हैं धीरे धीरे
खवाबो में तेरी झलकियां हो रही है आनी-जानी..
काली घटायें जिद्द को मेरे मुंदने लगी हैं
बढ़ रही है मेरी जात पर अज़ब ये परेशानी...
अब बांध मेरे सब्र का टूटने लगा है
तू छोड़ गया है मेरे अक्स पर कुछ ऐसी निशानी..
ये आलम, ये मौसम और ये बरसात का पानी
मुझे भीगा रहा है ज़ब्त तक,
मुझे डुबो रहा है रूह तक
बन गया है इसका बूँद बूँद मेरी वजह-ए-हैरानी....
ये आलम, ये मौसम और ये बरसात का पानी
फ़िज़ाओ में रौनके और ये हवाएं रूमानी !!
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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