Tuesday, January 21, 2014

इन हवाओ से साज़िशों कि बू आती है .........

इन हवाओ से साज़िशों कि बू आती है
किसी बहाने से जो मिलने तू आती है

कोई शक है तो इतिहास का पन्ना पलट के देख  
अपनों के फरेब से तो सल्तनत भी पलट जाती है

किसी दीवाने को मार कर ताकत कि आजमाइश कैसी
मोहोब्बत के नाम पर तो आबरू तक उतर जाती है

कुछ अरमां कहानियो कि बन्दिश में रहने दो 'श्लोक'
परिंदे से ये ख्वाब दुनियाँ कि जालसाज़ी में फस के मर जाती हैं



ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 22nd Jan, 2014
 

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!