कवित्री हूँ...
रिश्ता है मेरा शब्दो से उनके अर्थो से
साहित्य कि सुंदरता से उसकी गहनता से
अनुभूति से हर प्रकार कि
लिखती हूँ कविता
कभी ग़ज़ल..कहानी
तो कभी गीत..शायरी
पर सबको सुना नहीं पाती...
कैसे सुनाऊ ??
अखबारो में जगह ही नहीं मिलती
पहले से ही सांठ-गांठ रहता है प्रचारको का
कहीं पर नेताओ का इंटरव्यू होता है
कहीं पर घोटालो का काला चिट्ठा
औऱ नज़ाने क्या-क्या ?
क्या करूँ ??
ऐसे में मैं अक्सर
अंकित कर लेती हूँ अपनी लेखनी
अपनी डायरी के खिलखिलाते पृष्ठों पर
या फिर ब्लॉग पर उड़ेल देती हूँ
कुछ कविताएं अपनी...
ज्ञात है मुझे बेहतर
भागती कामुक दुनियाँ में अब किसी को समय कहाँ
पोर्न साईट के बीच से निकल कर
फेसबुक के स्टेटस औऱ कमेंट से फुर्सत पाकर
वैब चैट कि लत से बाहर आकर
महता कि इस दुकान से
स्वच्छ सोच को सेत में लेने का..
धुंधली पड़ती जा रही कविता कि भाषा
इसमें भी यदि तलाश करते हैं तो कामुकता का वर्णन
कहीं छोटी हो कर लुप्त ना हो जाए
भय तो है मुझे
लेकिन मैं नहीं रोकूंगी लिखना
खोने नहीं दूँगी कविता के अवशेष
जीवित रखूंगी सबके जहन में..
मैं अमर कविता का असर प्रत्येक आसार!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 11th Jan, 2014
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