छटती नहीं है बदली उदासियो कि
लाइन लगी हुई हैं रियाया में पापियो कि
इक भूल पे मिटाई नहीं जाती जिंदगी
कोई लौ नहीं है ये रुई के बातियों कि
जलन वालो को अक्सर खौफ रहा मेरी बुलंदियों से
पगले गला घोटने निकल आये हैं आंधियो कि
ह्या ने बांध दिए हैं कहीं तो मेरे कदम
वरना औकात क्या है दो कौड़ी के आदमियो कि
उस वक़्त ये नफरत उतर पड़ी चीखो में
कुचली जाने लगी औरत हर नातो में बांदियों सी
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 27th Jan, 2014
लाइन लगी हुई हैं रियाया में पापियो कि
इक भूल पे मिटाई नहीं जाती जिंदगी
कोई लौ नहीं है ये रुई के बातियों कि
जलन वालो को अक्सर खौफ रहा मेरी बुलंदियों से
पगले गला घोटने निकल आये हैं आंधियो कि
ह्या ने बांध दिए हैं कहीं तो मेरे कदम
वरना औकात क्या है दो कौड़ी के आदमियो कि
उस वक़्त ये नफरत उतर पड़ी चीखो में
कुचली जाने लगी औरत हर नातो में बांदियों सी
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 27th Jan, 2014
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