बड़ी मुश्किल से इज़हार करने कि हिम्मत जुटाई थी
उससे मिलने के खातिर नादान सी साज़िश रचाई थी
कभी भूले से भी जिसने ताका नहीं था मेरी ओर
हर दीवार फांद मुझसे आज मिलने वो आई थी
तलाश करते रहे जिसे अक्सर किताबो में हम
वो गजराई शोखियां हमने उनकी नज़र में पाई थी
गमो ने बगावत ठान ली थी उसी पल हमसे
उसके गुलाबी लबो पे इक झलक जब मुस्कान आई थी
खुदा ने इबादत में दे दिया हो जैसे सकूं सारा
उस दिलनशीन ने जब अपनी चुनरी उढ़ाई थी
सुनाया था हाल-ए-दिल उसने शायरी में हमको 'श्लोक'
हमने उसके तारीफ में फिर अपनी कविता सुनाई थी
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 23/01/2014
उससे मिलने के खातिर नादान सी साज़िश रचाई थी
कभी भूले से भी जिसने ताका नहीं था मेरी ओर
हर दीवार फांद मुझसे आज मिलने वो आई थी
तलाश करते रहे जिसे अक्सर किताबो में हम
वो गजराई शोखियां हमने उनकी नज़र में पाई थी
गमो ने बगावत ठान ली थी उसी पल हमसे
उसके गुलाबी लबो पे इक झलक जब मुस्कान आई थी
खुदा ने इबादत में दे दिया हो जैसे सकूं सारा
उस दिलनशीन ने जब अपनी चुनरी उढ़ाई थी
सुनाया था हाल-ए-दिल उसने शायरी में हमको 'श्लोक'
हमने उसके तारीफ में फिर अपनी कविता सुनाई थी
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 23/01/2014
No comments:
Post a Comment
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!