Tuesday, January 21, 2014

"अनकही पीड़ा"

 
स्त्री रूप होते ही
दुर्भाग्य! का बीज
हमारे जीवन कि भावुक मिट्टी में
डाल दिया जाता है
फिर ये मट्ठूस कदम-कदम
चलने लगता साथ
कायदे से हमारे भीतर प्रतिदिन
छीटते रहते हैं पराये धन कि
सोच का वांशिक खाद
कोमल ह्रदय कि स्त्री को
लोहा बनाने का
निरंतर प्रयास किया जाता है
सहने कि अथाह क्षमता ही
स्त्री का वास्तविक चोला है
जननी यही सीख देती चलती है अक्सर
हम बन ही जाते हैं इक दिन
अपनी माँ कि तरह ही
वेदना को सहने कि मशीन
पुरुषो के लिए भोग का साधन
बांध दिया जाता है किसी खूंटे से
फिर से रचाई जाती है
नारी के अस्मिता कि करुण कथा
हमारा झुकाव और
अपना सर्वत्व न्यौछावर का संकल्प 
बना देता है पुरुष को परमेश्वर
और हमारी चुप्पी बना देती है
पीड़ा को प्रधान
प्रेम के नाम पर
कामुकता से छले जाने का
इक जीवित मिसाल!!  
 
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 19th Jan, 2014

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!