Friday, January 24, 2014

"संवेदनाये हावी है"

'संवेदनाये हावी है'
यही लिखा था सफर के
इक पड़ाव पर दाए से बाए...
जहाँ से मचलते कारवाह का
गुदगुदा सा आग़ाज़ हुआ
अलग सा पाया वहाँ जिंदगी को
निर्मलता में डुबकी लगाता मिला
उस राह का 'पत्ता पत्ता, बूटा-बूटा'
सरग़ोशियो ने बिठा लिया था बहला के
तमाम आलम को अपनी पलकों पे
बेहद सुहावनी होने लगी वो
लड़ियाई लम्बी सिली रातें
नींद को तो बंदी ही बना लिया था
स्वप्न के उस सौदागर ने..
यातनाये विफल होने लगी थी
उदासियो के पतझड़ को
सागर ने सावन दे दिया था
लेकिन हकीकत से शुरू हुआ फ़साना..
अफसाना हो चला समय कि झपकी लेते ही
टकरा गया आखिरकार
नसीब के जिद्दी क्षितिज से वात्सल्य   
बर्फ पिघल उठे इका--इक
उन समतल खुशगवार राहो के
धुल गयी उस पथ कि बहकाने वाली पंक्ति
जिसने जीवन में उमंग भर दिया
नज़ाने क्यूँ?
अंत तक भी मैं
इस सत्य से महरूम रही
शब्द के दो तात्पर्य होते है जानकर
इसका भी इक दूसरा अर्थ रहा होगा
शायद कुछ ऐसा 
कि आगे खतरा है!!



रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

 

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