Thursday, January 16, 2014

"आक्रोश"


कहो कि हम अधीर हैं
सहनशीलता से ज्यादा
अच्छा लगता है
ये सुनने में हमें 
सहन करने से कई
बेहतर लगा विरोध करना
हमारी चुप्पी बोलने लगी थी
कि हम गुलाम होकर रह गए हैं
हिंसा अक्सर कायर कहती
और जुल्म करती रही हमपर
हम ज़रा सा झुके
तो तुमने सीना तान लिया
हमने रिश्तो कि कद्र कि
तुमने हमें ही बेकद्र कर दिया
जितना सहती रहे 
उतना तुम करते रहे पुरुषार्थ पे घमंड
औरत कि गर्भ से ही पैदा हुए हो
और आज दुनिया देख रहे हो
फिर औरत को ही तुम्हारे
ज़बरन कामुकता का
शिकार बना लेते हो
बस अब अत्त हो चला है
हमारे मान को
कुचलते रहने के कारवाह का
हम अब असहनशील
होकर जीना चाहते हैं
हम एक फूल थे
तुमने हमें आग बना दिया 
हम अब    
छीनते हैं तुम्हारा सारा गुमान
अब सहो तुम बरसो से पाली हुई है
जो हमने तुम्हारे लिए हमारी घृणा को
आक्रोश का सामना करने का
साहस भरो अब खुद में
क्यूंकि
तुमने ही हमें कारतूस बनाया है!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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