Wednesday, January 22, 2014

अज़ब आदत ज़माने वालो ने पाली हुई है....

अज़ब आदत ज़माने वालो ने पाली हुई है
दिल में खंज़र जुबां पर वाह-वाही सम्भाली हुई है

अपनी-अपनी कहकहे कि चल पड़ी है आंधियां
सत्य, अहिंसा इंसानियत, लव्ज़ अब गाली हुई है

जुर्म कि गर्माइयाँ है हर उम्र कि बिसात में
इस क़वायद से मुझको भी हैरानी हुई है 

कारवाह लिए चल पड़े हैं सबक गीरो में हो शामिल
बेटियाँ कोख में जिन हैवानो ने खुद मारी हुई हैं

सूरत को पूजने वाले सीरत को जबसे भूले
हर बेमुराद ने अपनी शक्ल सवारी हुई है

सूरज को शर्म आई जब अँधेरा हुआ यूँ हावी
सोच पैसे कि मशालो से सबने बारी हुई है

ताली मार के हस पड़ी 'श्लोक' कलयुग के तेवर देख
इस सदी में बाप ने अपनी बेटी ही धंधे में उतारी हुई है..


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 23rd Jan, 2014

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