मुझे मिल रही
हैं सौगाते बदोलत
जितना भी खता
किया
इक तूफ़ान उड़ा ले
गयी शाख से
मैंने जितना तिनका
जमा किया
मैं टकरायी लहर बन
उसी पत्थर से
बार बार
जिसने अपनाया न मुझको
कभी हर पल
रुस्वा किया
बंद पिंजरे में बैठ
आसमान को देखती
रही तो वो
बरसे
ज़रा भीगने कि आरज़ू
कि हमने तो
हर बूँद ने
शिकवा किया
मैं लोहा बनी
तो लोहार ने
कटा सोना बनी
तो सोनार ने
पिघलाया
हर जात ने
ज्यातती कि मुझपर
तरीका इख्तियार अपना-अपना किया
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Year : 2013
Year : 2013
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