Monday, January 27, 2014

"रिश्ते"

इन रिश्तो कि मांग है
मेरा अनमोल सपना
इन्हे भेंट कर दूँ
इनकी मन मर्जी को
जीवन कि हर स्वाश
समर्पित कर दूँ
यदि ऐसा न हुआ
तो निंदा का पात्र रहूंगी इनके मध्य
जब भी सब इक जुट हो
चर्चा उठाएंगे
मुझे बेईमान बनाते जायेंगे..

तो क्या दे दूँ बलि ?
अपनी इच्छाओ कि
बन जाऊं इक आदर्श बेटी, बहु, बहन
सब कोई खींचता ही तो है
अपने-अपने पहले में
किन्तु कोई नहीं जानता कि
मैं  क्या चाहती हूँ?
बांधे हुए हैं मुझे
मीठे बोल और खून के पगहे में 
और खींचते चले जा रहे हैं
गाय कि तरह मुझे  
मेरे मन कि तरंगो से
किसी को कोई लेना देना ही नहीं!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 27th Jan 2014

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