तुम बिन मैं चिराग हूँ अधजला सा
तुम्हारे बिन मैं दिन हूँ मगर ढला सा
सूरज हूँ मगर धुंध में गवाचा हूँ
चाँद हूँ अमावस का बुझा सा
तितली हूँ मगर गुलो से वास्ता नहीं
जिन्दा हूँ मगर जीता हूँ अधमरा सा
तेरे बिन न हीरा हूँ न ही पत्थर मैं
तीर हूँ अपने ही जिगर में गड़ा सा
न फ़कीर हूँ न ही बादशाहियत रही बाकी
घूमिल किरदार हूँ तेरी कदमो में पड़ा सा
पाती हूँ न फल हूँ और न हवा का झोंका 'श्लोक'
मैं फूल हूँ मगर शाख से झड़ा सा
तेरे बिन भवर में हूँ साहिल से नहीं नाता
लहर हूँ मगर ठोकरो से पीछे मुड़ा सा
ख्वाइशे बेज़ार हूँ जीस्त भी हूँ सुगला सा
अपनी तबाही का नासूर दास्ताँ हूँ खुला सा
तपी जमीं हूँ रेत भी हूँ उड़ा सा
मुराद हूँ अश्कों और आहों से धुला सा
तेरे बिन न शायर हूँ न ही ग़ज़लकार कोई
गमगीन लव्ज़ हूँ दर्द-ए-शबाब में घुला सा
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 28th Jan 2014
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