Thursday, January 9, 2014

"आत्महत्या "

इक पत्र मिला सखी 'उर्मिला' का
उस से मालूम चला कि
'स्वाति' ने आत्महत्या कर ली
कारण अविश्वसनीय था
प्रेम में धोखा मिला उसे
गर्भवती हो गयी थी
यही लिखा था उस पत्र में
जो दिमाक को ठनका गया
ठग़मारी भई बैठ गयी चित सी मैं 
सनका मन बोला वो ऐसी कभी नहीं थी
इतनी कमज़ोर आखिर कैसे हुई वो  
मैंने कार्यालय से छुट्टी लिया
सोनबरसा के लिए निकल पड़ी
वहाँ पहुंचते ही पाया
जितने मुँह उतनी बाते करते हुए लोगो को
अफवाह हकीकत से कई कदम आगे निकल चुकी थी 
तरह-तरह के सवाल उठाये जाते रहे
स्वाति के चरित्र पर घड़ी-घड़ी
हर व्यक्ति के लिए बात-चीत का
मसालेदार मसला बन गया था
सुनते सुनते मैं भी बेहाल हो चुकी थी
ऐसी गन्दी बात बोल देते थे
नुकड़ पर खड़े होते आवारा लड़के तक
जिनका चरित्र है भी या नही?
इक सवाल ही था...
कई भद्दी गालियां देती रहती
उसकी चाची तो कभी उसकी भाभी
कोई 'छिनार' बोलता तो कोई 'वैश्या'
इक रात
स्वाति मेरे सपने में आयी
और कहने लगी 'श्लोक'
मैं जीना चाहती थी
किन्तु मैं शून्य हो गयी थी
मुझे कुछ भी नहीं बूझ रहा था
सिवाय वो हादसे के जो मेरे साथ हुआ
बाद में बुरा लगा पर हाथ से निकल चुका था सब.. 
सुबह सोच आया ये लोग भी ना?
किसी ने एहसास भी नही किया होगा
उस शून्य स्थिति का मतलब तक
वाज़िब कारण तो चलो कौन ढूँढता है?
जब मसालादार बात बनानी हो..
मैं किसको बताती कौन सुनता
मेरी सपने कि बात को
दो बात मुझे भी सुनाने बैठ जाते
काश!
उसके मरने के उपरान्त
उसकी आत्मा को छल्ली करते लोगो को
ये बताने कि चरित्रहीन नहीं थी वो
और वास्तविक कारण क्या था?
बताने आ जाती स्वाति...
परन्तु कैसे आती स्वाति ये बताने को??

ये स्वीकार करने को कि वो अपराधी तो है
किन्तु स्वयं कि निर्मम हत्या का षड्यंत्र रचाने कि!!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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