नामुमकिन ही तो था
तुम्हारे बिना मेरे अनसुलझे
गठियाये सवालो का ये जान पाना
कि अधूरापन पूर्णता कि
ओढनी ओढ़ के कैसे बलखाने लगती है?
इतनी बड़ी बोझ लगती जिंदगी
कब, कहाँ, कैसे कम पड़ने लगती है ?
इक इंसान में खुदा को पा लेने के
कठिनतम दृष्टिकोण का सरल जवाब..
मोहोब्बत क्या है आखिर??
कैसे दो धड़कने इक ही साथ बजने लगती हैं?
आँखों कि लाल-हलके गुलाबी रंगो कि लकीरो को
कैसे कोई भाषा बना के पढ़ लेता है?
आखिर कौन सी लिपि होती है इनकी?
कमियाँ कब अनदेखी सी रह जाती हैं?
घोड़े कि तरह मस्ती में भागता हुआ
ये समय नजाने रेंगने कब लगता है ?
राते कब बेचैन करने लगती हैं?
क्यूँ घड़ी कि सुइयों को
रोक देने का मन करता है
सहने कि शक्ति कैसे बढ़ जाती है?
बारिश सकून बनती है कौन से मौसम में ??
बूंदो के जलाने का सिलसिला
कैसे औऱ कब चलता है?
इतंज़ार कोई कैसे करता है?
अपनी अंतिम स्वाश तक
इस स्पषटता के बावज़ूद
अब कुछ भी नहीं लौटेगा
कैसे प्रत्येक आहट कि खबर
मिल जाती है बिना सन्देश को भेजे ही?
कैसे जन्नत छटाक सी
बाजुओ में तब्दील हो जाती है?
मुस्कान बेवजह ही सुर्ख होंठो पर
कैसे छपती मिटती रहती है?
इन सब का निचोड़ निकला ऐसे छोर पर
जहाँ से शुरू हुआ नए सिरे से जीवन
जब केवल दे देना ही
इक मात्र आंतरिक मंशा थी...
बड़ी खामोशियो से उमड़ते खूबसूरत एहसास मुझे
सब कुछ समझा गए कि ये सब हादसे
सिर्फ औऱ सिर्फ होते हैं
बेपनाह मोहोब्बत के आलम में!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
तुम्हारे बिना मेरे अनसुलझे
गठियाये सवालो का ये जान पाना
कि अधूरापन पूर्णता कि
ओढनी ओढ़ के कैसे बलखाने लगती है?
इतनी बड़ी बोझ लगती जिंदगी
कब, कहाँ, कैसे कम पड़ने लगती है ?
इक इंसान में खुदा को पा लेने के
कठिनतम दृष्टिकोण का सरल जवाब..
मोहोब्बत क्या है आखिर??
कैसे दो धड़कने इक ही साथ बजने लगती हैं?
आँखों कि लाल-हलके गुलाबी रंगो कि लकीरो को
कैसे कोई भाषा बना के पढ़ लेता है?
आखिर कौन सी लिपि होती है इनकी?
कमियाँ कब अनदेखी सी रह जाती हैं?
घोड़े कि तरह मस्ती में भागता हुआ
ये समय नजाने रेंगने कब लगता है ?
राते कब बेचैन करने लगती हैं?
क्यूँ घड़ी कि सुइयों को
रोक देने का मन करता है
सहने कि शक्ति कैसे बढ़ जाती है?
बारिश सकून बनती है कौन से मौसम में ??
बूंदो के जलाने का सिलसिला
कैसे औऱ कब चलता है?
इतंज़ार कोई कैसे करता है?
अपनी अंतिम स्वाश तक
इस स्पषटता के बावज़ूद
अब कुछ भी नहीं लौटेगा
कैसे प्रत्येक आहट कि खबर
मिल जाती है बिना सन्देश को भेजे ही?
कैसे जन्नत छटाक सी
बाजुओ में तब्दील हो जाती है?
मुस्कान बेवजह ही सुर्ख होंठो पर
कैसे छपती मिटती रहती है?
इन सब का निचोड़ निकला ऐसे छोर पर
जहाँ से शुरू हुआ नए सिरे से जीवन
जब केवल दे देना ही
इक मात्र आंतरिक मंशा थी...
बड़ी खामोशियो से उमड़ते खूबसूरत एहसास मुझे
सब कुछ समझा गए कि ये सब हादसे
सिर्फ औऱ सिर्फ होते हैं
बेपनाह मोहोब्बत के आलम में!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
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