Wednesday, January 22, 2014

"मौसम"

चौबारे पर रखा
गमले का हरा सुनेहरा पौधा
आज खुसर-फुसर कर रहा है
बड़े ही लुभावने अंदाज़ में....
जाने क्या??
मौसम ने फुरसतों में करवाई बिठाई है
उर्फ़ ऊपर से महफ़िल में
अंगड़ाई ले रही है सरगोशियाँ
कभी इस बल तो कभी उस बल..
साफा लपेटा हुआ है
हिमालय ने अपने सर पर
सेब के मुख गदगद लाल   
सूरज को छिपा दिया है कहीं
किसी अनजान जगह
तितलियाँ आज ज्यादा ही
कुछ इतरा रहीं है फूलो पर बैठ
बरगद के पुराने पेड़ पर
मधुमक्खियों के रानी कि शादी है 
शाम ने बड़ी अदा से
काली साड़ी लपेट शिरकत कि है
आलम बिलकुल बौराया सा है
सितारे लुका छिपी खेल रहे हैं
गुढी सलेटी बदरियो में
चाँद आज जल्दी सो गया
महक उठी रात कि रानी
कुछ इसकदर शरारती है
आज मौसम मेरे शहर का .....
और तुम सुनाओ
क्या कभी होता है ऐसा मिज़ाज़
तुम्हारे शहर का??


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 22nd jan, 2014

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